चार अरिय सत्य

चत्तारि अरियसच्चानि
(=चार अरिय सत्य)
एकं समयं भगवा, वाराणसियं विहरति इसिपतने मिगदाये।

एक समय भगवा वाराणसी के ऋषिपतन मृगदाय में विहार करते थे।
वहां,तथागत ने चार अरिय सत्य का उपदेश दिया।

चत्तारि अरियसच्चानि अर्थात "चार अरिय सत्य"

बोधिसत्व सिद्धार्थ गौतम को ३५ साल की उम्र में ई. पू. ५२८, वैशाख पूर्णिमा की रात को सम्यक सम्बोधि प्राप्त होने के दो महीने बाद सारनाथ में अषाढ़ी पूर्णिमा के दिन पंचवग्गिय परिव्राजकों- कौंडिन्य, वप्प, भद्दिय, महानाम और अश्वजित को प्रथम धम्म उपदेश दिया।

इस ऐतिहासिक उपदेश को धम्मचक्कप्रवर्तन सुत्त में संग्रहित किया गया है।

बुद्ध ने चार अरिय सत्य का उपदेश दिया।

कौन से चार अरिय सत्य ?

यह हैं-

(१) इदं दुक्खं अरियसच्चं ।
- यह दु:ख अरिय सत्य है।

(२) इदं दुक्खसमुदयं अरियसच्चं ।
- यह दु:ख समुदय अरिय सत्य है।

(३) इदं दुक्खनिरोधं अरियसच्चं ।
- यह दु:ख निरोध अरिय सत्य है।

(४) इदं दुक्खनिरोधगामिनि पटिपदा अरियसच्चं ।
- यह दु:ख निरोधगामिनि प्रतिपदा अरिय सत्य है।

अरिय शब्द का अर्थ-
अर             = चक्र की तीली।
अरि            = चक्र।
अरिय          = चक्र से संबंधित।
अरिय धम्म   = चक्र से संबंधित धर्म।
अरिय मग्ग   = चक्र से संबंधित मार्ग।
अरिय सच्च  = चक्र से संबंधित सत्य।
धम्मचक्क पवत्तन का चक्क ( चक्र ) इसी अरिय मग्ग और अरिय सच्च से जुड़ा है।

"आर्य" शब्द "अरिय" शब्द का पर्याय नहीं है।

तथागत ने कहा-

✅"इदं खो पन भिक्खवे ! दुक्खं अरिय सच्चं-
"जातिपि दुक्खा,
जरापि दुक्खा, 
व्याधिपि दुक्खो,
मरणम्पि दुक्खं, 
अप्पियेहि सम्पयोगो दुक्खो, पियेहि विप्पयोगो दुक्खो, यम्पिच्छ न लभति तम्पि दुक्खं, सखित्तेन पञ्चुपादानक्खन्धापिदुक्खा।"

अर्थात-
भिक्षुओं! यह दुःख अरिय-सत्य है जन्म भी दुःख है, जरा (बुढापा) भी दुःख है, रोग भी दुःख है, मृत्यु भी दुःख है, अप्रियों से संयोग मिलन दुःख है, प्रियों से वियोग दुःख है, इच्छा होने पर किसी वस्तु का न मिलना भी दुःख है। संक्षेप में पाँच उपादान स्कन्ध भी दुःख है।

✅"इदं खो पन भिक्खवे !
यायं तण्हा पोनोभाविका नन्दिरागसहगता तत्र - तत्राभिनन्दिनी, सेय्य थीदं- कामतण्हा, भवतण्हा, विभवतण्हा ।"

अर्थात-
भिक्षुओं ! यह दुःख-समुदय अरिय सत्य है- यह जो कि फिर जन्म कराने वाली, प्रीति और राग से युक्त, उत्पन्न हुए स्थानों से अभिनन्दन कराने वाली तृष्णा है जैसे कि -
१. काम तृष्णा,
२. भव तृष्णा जन्म सम्बन्धी तृष्णा 
३. विभव तृष्णा उच्छेद की तृष्णा।

✅"इदं खो पन भिक्खवे !
दुक्खनिरोधं अरियसच्चं,यो तस्सायेव तण्हाय असेस-विराग निरोधो, चागो, पटिनिस्सग्गो, मुक्ति,अनालयो।"

अर्थात-
भिक्षुओं ! यह दुःख निरोध अरिय सत्य है जो उसी तृष्णा का सर्वथा विराग है, निरोध रुक जाना, त्याकग, प्रतिनिस्सर्ग निकास, मुक्ति-छुटकारा, लीन न होना है।

✅"इदं खो पन भिक्खवे !
दुक्खनिरोधगामिनि पटिपदा अरियसच्चं, अयमेव अरियो अट्ठंगिको मग्गो, सेय्यथीदं-
१. सम्मादिट्ठि
२. सम्मासंकप्पो
३.सम्मावाचा
४.सम्माकम्मन्तो
५.सम्माआजीवो
६.सम्मा वायामो
७.सम्मासति
८.सम्मासमाधि ।"

अर्थात-
भिक्षुओं! यह दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा आरिय सत्य है- यही अरिय अष्ठांगिक मार्ग जैसे कि- 
सम्यक दृष्टि,
सम्यक संकल्प, 
सम्यक वचन,
सम्यक कर्मान्त,
सम्यक आजीविका, 
सम्यक व्यायाम (प्रयत्न), 
सम्यक स्मृति,
सम्यक समाधि।

इदं चत्तारि अरियसच्चानि ।
यह चार अरिय सत्य है।

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