जाति असल मे नस्ल से भी ज्यादा भयानक है
हजारों साल तक चल सकने वाली किसी भी नफरत को अगर आप समझना चाहते हैं तो आपको पहले भारत के समाज और धर्म को समझना पड़ेगा। पुलिट्ज़र पुरस्कार विजेता इसाबेल विलकिनसन इस सूत्र को गहराई से जान और समझ गई हैं, उन्हे भारत के समाज और भारतीय धार्मिक परंपरा का अनुग्रहित होना चाहिए, और वास्तव मे वे इसी अर्थ मे भारत को धन्यवाद देती भी हैं। अपने जन्म से लेकर अब तक के जीवन मे उन्होंने अमेरिका और यूरोप मे फैली नस्लवादी हिंसा और घृणा को समझने की कोशिश की है, लेकिन रेस/नस्ल की थ्योरी के आधार पर इस घृणा और हिंसा को इस गहराई से ‘संस्थागत’ स्वरूप मिलने की व्याख्या नहीं की जा सकती। इसीलिए वे भारत की महानतम खोज – 'वर्ण और जाति व्यवस्था' की तरफ मुड़ती हैं और काले समुदायों के प्रति अमेरिकी या युरोपियन गोरों के मन मे भारी हुई घृणा को समझने की कोशिश करती हैं। यहाँ मजे की बात देखिए वे कि भारत की इस महान खोज के आधार पर इसाबेल नफरत की इस गुत्थी को सुलझा लेती हैं, वे अमेरिकी समाज की समस्या को भारत से आने वाले ज्ञान के आधार पर आसानी से समझ लेती हैं। इसाबेल अपनी किताब और विश्लेषण को खत्म करते हुए इस किताब का नाम र