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जाति असल मे नस्ल से भी ज्यादा भयानक है

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 हजारों साल तक चल सकने वाली किसी भी नफरत को अगर आप समझना चाहते हैं तो आपको पहले भारत के समाज और धर्म को समझना पड़ेगा। पुलिट्ज़र पुरस्कार विजेता इसाबेल विलकिनसन इस सूत्र को गहराई से जान और समझ गई हैं, उन्हे भारत के समाज और भारतीय धार्मिक परंपरा का अनुग्रहित होना चाहिए, और वास्तव मे वे इसी अर्थ मे भारत को धन्यवाद देती भी हैं।  अपने जन्म से लेकर अब तक के जीवन मे उन्होंने अमेरिका और यूरोप मे फैली नस्लवादी हिंसा और घृणा को समझने की कोशिश की है, लेकिन रेस/नस्ल की थ्योरी के आधार पर इस घृणा और हिंसा को इस गहराई से ‘संस्थागत’ स्वरूप मिलने की व्याख्या नहीं की जा सकती। इसीलिए वे भारत की महानतम खोज – 'वर्ण और जाति व्यवस्था' की तरफ मुड़ती हैं और काले समुदायों के प्रति अमेरिकी या युरोपियन गोरों के मन मे भारी हुई घृणा को समझने की कोशिश करती हैं। यहाँ मजे की बात देखिए वे कि भारत की इस महान खोज के आधार पर इसाबेल नफरत की इस गुत्थी को सुलझा लेती हैं, वे अमेरिकी समाज की समस्या को भारत से आने वाले ज्ञान के आधार पर आसानी से समझ लेती हैं।  इसाबेल अपनी किताब और विश्लेषण को खत्म करते हुए इस किताब का नाम र

देश की लोकसभा तथा शीर्ष नौकरियों में अनुसूचित वर्गों एवं ओबीसी का प्रतिनिधित्व

  देश की लोकसभा तथा शीर्ष नौकरियों में अनुसूचित वर्गों एवं ओबीसी का प्रतिनिधित्व आज भी भारत में, सत्ता, नौकरियों एवं संपत्ति का बंटवारा वर्णों के क्रम के अनुसार ही है, वर्ण व्यवस्था पूरी तरह लागू है- कुछ तथ्य  लोकसभा वर्तमान लोकसभा में (यानी 2019 में चुने गए सदन) कुल 543 सांसदों में 120 ओबीसी, 86 अनुसूचित जाति और 52 अनुसूचित जनजाति के हैं और हिंदू सवर्ण जातियों के सांसदों की संख्या 232 है। आनुपातिक तौर देखें, तो ओबीसी सांसदों का लोकसभा में प्रतिशत 22.09 है, जबकि मंडल कमीशन और अन्य आंकड़ों के अनुसार आबादी में इनका अनुपात 52 प्रतिशत है। इकनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित एक विश्लेषण के मुताबिक, आबादी में करीब 21 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले सवर्णों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व उनकी आबादी  से करीब दो गुना 42.7 प्रतिशत है।  52  प्रतिशत ओबीसी को अपनी आबादी के अनुपात से आधे से भी कम और सवर्णों को उनकी आबादी से दो गुना प्रतिनिधित्व  मिला हुआ है।  प्रधानमंत्री कार्यालय एवं केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों में ‘द प्रिंट’ में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, 2019 में पीएमओ सहित केंद्र सरकार के विभिन्न

बालाथल और वडनगर से मिले ये दोनों नरकंकाल पद्मासन ( Lotus Position ) में हैं.....

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पहला नरकंकाल राजस्थान के जिला उदयपुर के बालाथल से मिला है......आहड़ सभ्यता का है, जो सिंधु घाटी सभ्यता के समकालीन थी..... दूसरा नरकंकाल गुजरात के जिला महेसाणा के वडनगर से मिला है.....प्लेटफॉर्म पर बने एक स्तूप के समीप के कमरे से मिला है..... बालाथल और वडनगर से मिले ये दोनों नरकंकाल पद्मासन ( Lotus Position ) में हैं..... गोतम बुद्ध ने पद्मासन में बैठने की मुद्रा सिंधु घाटी सभ्यता की प्राक् बौद्ध सभ्यता से अर्जित की थी......