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चलता फिरता अम्बेडकर मेला (Ambedkar Mela On Wheels)

चलता-फिरता अम्बेडकर मेला ( Ambedkar Mela on Wheel) बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम साहब ने बामसेफ के तत्वाधान में ‘चलता-फिरता अम्बेडकर मेला’ का आयोजन १४ अप्रेल से १४ जून, १९८० तक किया. उन्होंने बाबा साहब डा. भीमराव अम्बेडकर के मिशन को देश की राजधानी दिल्ली के चारों ओर फैले उत्तर भारत के नौ राज्यों में फ़ैलाने के उद्देश से इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को संचालित किया था. इसके अन्तर्गत मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर के अतिरिक्त दो केंद्र शासित प्रदेशों यथा- दिल्ली और चंडीगढ़ को शामिल किया गया था. दो माह तक चलाये गये इस कार्यक्रम की शुरुआत १४ अप्रेल, १९८० को दिल्ली से की गयी थी. पूरे कार्यक्रम की अवधि में एक स्थान से दूसरे स्थान को भ्रमण करता हुआ यह मेला उत्तर भारत के नौ राज्यों में ३४ महत्वपूर्ण स्थानों में आयोजित किया गया था. ‘चलता-फिरता अम्बेडकर मेला’ कार्यक्रम की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि मेला उक्त सभी राज्यों की राजधानियों में रविवार के दिन ही आयोजित किया गया [1] . यह मेला क्यों ? ‘चलता-फिरता अम्बेडकर मेला’ कार्यक्रम का प्रमुख उद्

बामसेफ BAMCEF क्या है ?

BAMCEF क्या है ? इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी ? यह अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़े एवं धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग के सरकारी और गैर सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों का संगठन है. बामसेफ अंग्रेजी के छ: अक्षरों BAMCEF से मिलकर बना है जो वस्तुतः "The ALL India Backward (SC,ST,OBC) And Minorities Communities Employees Federation  का संक्षिप्त रूप है. इसका मकसद शोषित और पीड़ित समाज के बुद्धिजीवी लोगों को संगठित करके समाज की गैर राजनितिक जड़ों को मजबूत करना है. मान्यवर कांशीराम साहब कहते थे कि जिस समाज की गैर राजनीतिक जड़ें मजबूत नहीं होती उस समाज की राजनीति कभी सफल नहीं हो सकती. अगर हम बामसेफ की पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो यह साफ दिखायी देता है कि बाबा साहब डा. अम्बेडकर के परिनिर्वाण के बाद जिन लोगों के ऊपर मिशन को चलाने की जिम्मेदारी थी उन लोगों ने मिशन को बेचा. वे बाबा साहब के सपनों को पूरा करने की बजाय गाँधी के सपनों को पूरा करने में लग गये. जिस वर्ष बाबा साहब का देहान्त हुआ उसी वर्ष मान्यवर कांशीराम साहब महाराष्ट्र में पुणे पहुँचते हैं और अम्बेडकरवादी गतिविधियों से उनका परिचय हुआ. बाबा

अपने ही इतिहास को विकृत करने से बाज आइये

अपने ही इतिहास को विकृत करने से बाज आइये बहुजन इतिहास को विकृत करने की मानसिकता विगत कई दिनों से सोशल मीडिया में बामसेफ की स्थापना के बारे में गलत और भ्रमित करने वाली जानकारी फैलायी जा रही है। यह काम सीधे तौर पर कोई संघी नहीं बल्कि मिशन के नाम पर अपनी धन्धागिरी चलाने वाले बोरकर और बामन मेश्राम की करतूत है। यह उनकी कुंठित और इतिहास को विकृत करनेवाली मानसिकता का परिचायक है। वास्तविक तथ्य यह है कि बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम जी ने 15 अगस्त 1971 को आनन्द हाउसिंग सोसायटी, पुणे में स्थित श्री एल. डी. शिन्दे के घर पर बहुजनों के उत्थान और कल्याण के निमित्त जो पहला संगठन बनाया उसका नाम था "अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ी जातियाँ और अल्पसंख्यक कर्मचारी कल्याण संघ" । कुछ औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद एक सितंबर 1971 से इसकी सदस्यता का अभियान चलाया गया था। छः सप्ताह में ही लगभग 1000 पढ़े लिखे कर्मचारी इसके सदस्य बन चुके थे। इन सदस्यों में 50% से अधिक स्नातक, दोहरे स्नातक और परास्नातक थे। बाकी बचे सदस्यों में कुछ सदस्य कम पढ़े लिखे होने के बावजूद भी वे संघ के लिए बहुत