बौध्द धम्म व संस्कृति का महान केन्द्र वाराणसी

वाराणसी के प्राचीनतम उल्लेख
(वाराणसी : नामकरण के 64 साल पर विशेष)
अंग्रेजों के समय 'Benares' कहा जानेवाला वाराणसी का आधुनिक ढंग से प्रशासनिक नामकरण आज ही के दिन 24 मई, 1956 को किया गया। स्थानीय अखबार अमर उजाला ने अपने आज के अंक में इस ऐतिहासिक दिन को विशेष महत्व और वाराणसी की कुछ चर्चित हस्तियों की टिप्पणियों के साथ प्रकाशित किया है। अखबार लिखता है कि धर्म, कला, संस्कृति, सभ्यता का शहर काशी का नाम पञ्चाङ्ग के अनुसार बैशाख पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा और चन्द्र ग्रहण के योग में काशी का नाम वाराणसी किया गया था। यह तो आजादी के बाद नये शासनादेश से संबंधित सूचना मात्र है। आइये वाराणसी और इसके नामकरण से जुड़े सुदूर अतीत के कुछ ऐतिहासिक तथ्यों से आपका परिचय करवाते हैं-
'वाराणसी' के आरंभिक और प्राचीनतम उल्लेख हमें बौद्ध साहित्य में मिलते हैं। कुछ लोग 'काशी' या 'वाराणसी' से मिलते-जुलते शब्दों के आधार पर इसके नामकरण का आधार अथर्ववेद में ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं लेकिन वह तथ्यों से परे व निरर्थक है। वहाँ इन शब्दों के अर्थ भिन्न हैं और उनसे किसी नगर का बोध नहीं होता और न ही ये शब्द किसी नगर के लिए प्रयुक्त किये गये हैं। सही मायने में बौद्ध त्रिपिटक साहित्य के दीघनिकाय के महागोविंद सुत्त और महापदान सुत्त में पहली बार 'वाराणसी' का एक नगर के रूप में उल्लेख मिलता है। महागोविंद सुत्त में जम्बूद्वीप के बुद्ध पूर्व के सात राज्यों और उनकी राजधानियों का नाम मिलता है। क्रमशः ये राज्य और उनकी राजधानियां हैं- 
कलिंग- दन्तपुर
अस्सक- पोतन
अवन्ति- महिस्सति (महिष्मति)
सौवीर- रोरुक
विदेह- मिथिला
अंग- चम्पा
काशी- वाराणसी
 यहाँ एक राष्ट्र के रूप में 'काशी' और उसकी राजधानी के रूप में 'वाराणसी' का उल्लेख पहली बार आया है। इसी तरह महापदान सुत्त में तत्कालीन भारत के छः प्रमुख नगरों में बंधुमती, अरुणावती, अनोमा, खेमवती, सोमवती औऱ वाराणसी का उल्लेख मिलता है। इस सुत्त में भगवान बुद्ध ने एक उपमा का प्रयोग किया है जिसमें काशी के सुंदर वस्त्र का उल्लेख है। वे कहते हैं-भिक्षुओं ! जैसे मणिरत्न काशी के वस्त्र लपेटा हुआ हो, तो वह न तो मणि रत्न काशी के वस्त्र में चिपकता है और न ही काशी का वस्त्र मणिरत्न में चिपकता है। ऐसा क्यों ? उत्तर में वे कहते हैं- "दोनों की शुद्धता के कारण ।" दीघनिकाय का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सुत्त है महापरिनिब्बान सुत्त। इसमें भी तत्कालीन भारत या जम्बूद्वीप के जिन छः प्रमुख नगरों का उल्लेख मिलता है उनमें चम्पा, राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, कोसम्बी और वाराणसी की गणना की गयी है। इसी के साथ राष्ट्र के रूप में 'काशी' और इसकी राजधानी के रूप में 'वाराणसी' का वैभवपूर्ण वर्णन समस्त बौद्ध वाङ्गमय में यत्र-तत्र सर्वत्र मिलने लगता है। यहाँ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अति प्राचीनकाल के जितने भी साहित्यिक उद्धरण प्राप्त होते हैं उनमें कुछ अपवादों को छोड़कर सभी जगह 'काशी' या तो 'राष्ट्र' के रूप में या फिर 'जनपद' के रूप में उल्लिखित है और इसकी राजधानी नगर के रूप में 'वाराणसी' का वर्णन आया है। कहीं कहीं अपवाद के रूप में 'काशी' का नगर के रूप में और वाराणसी का 'राष्ट्र' के रूप में उल्लेख मिलता है।
वाराणसी का अधुनातन इतिहास चाहे भले ही ब्राह्मण धर्म, संस्कृति एवं परंपरा से जुड़ा हुआ दिखायी देता हो लेकिन अति प्राचीन काल से यह नगर बौद्ध धर्म, परम्परा और संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़ा रहा है या हम कह सकते हैं कि यह नगर श्रमण-बौद्ध धम्म, संस्कृति एवं परम्परा का ही प्रमुख केन्द्र रहा है। वाराणसी के उद्भव और विकास की कहानी बौद्ध धर्म के उद्भव और विकास से बहुत गहराई से जुड़ी हुई दिखायी देती है। बौद्ध साहित्य में बुद्धपूर्व काल के वाराणसी का गौरवशाली इतिहास भी विद्यमान है। जातक साहित्य से पता चलता है कि वाराणसी का प्राचीन नाम रम्मनगर था। बुद्ध पूर्व काल में यह नगर कभी सुरंधन नगर, कभी सुदस्सन नगर, कभी पुष्पवती तो कभी मोलिनी नगर के नाम से विख्यात रहा है।
वाराणसी का नामकरण यहाँ प्रवाहित होनेवाली आधुनिक वरुणा नदी के नाम पर हुआ प्रतीत होता है जो प्राचीनकाल में वरणा, वरणावती, वाराणसी या वराणसी के नाम से जानी जाती थी। बौद्ध ग्रंथों से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि वाराणसी वरुणा के तट पर स्थित है। कुछ ग्रंथों में इसे गंगा-वरुणा के संगम पर स्थित बताया गया है। इस तथ्य की पुष्टि राजघाट के उत्खनन से भी होती है। गंगा के पश्चिमी तट पर वाराणसी के स्थित होने अथवा वाराणसी के समीप गंगा के प्रवाहित होने के अनेक साक्ष्य भी मिलते हैं। वरुणा एवं शुष्क नदी असि (असी) के मध्य वाराणसी की स्थिति के पौराणिक विवरण बहुत बाद के हैं और इस आधार पर वाराणसी के नामकरण की कल्पना जैसा कि कुछ लोग करते हैं वह सत्य से परे है और उसमें ऐतिहासिक तथ्यों का अभाव है।
प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार
प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी

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