अयोध्या के बौद्ध अवशेषों पर बहुजनों की चिन्ता

अयोध्या के बौद्ध अवशेषों पर बहुजनों की चिन्ता
यह सही है कि अयोध्या का प्राचीन इतिहास बौद्ध धम्म-संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़ा है और वहाँ मिलनेवाले पुरातात्विक अवशेष भी बौद्ध काल के स्वर्णिम इतिहास का उद्घोष करते हुए दिखायी देते हैं, फिर भी मेरी नजर में अयोध्या के पुराने बौद्ध खंडहरों  पर सिर पटककर खुद को लहूलुहान करने की बजाय नया इतिहास लिखने, बनाने की तैयारी करना ज्यादा तार्किक, उचित और न्यायसंगत तथा समय की मांग है। इतिहास गवाह है कि जब-जब देश में बोधिवृक्ष की जड़ें काटी गयीं बुद्ध के अनुयायियों ने हर बार नया इतिहास सृजित किया और बौद्ध धम्म का पुनरोत्थान करके उसको वैश्विक धर्म बना दिया। मनुवादियों के अनवरत विध्वंस के बावजूद बौद्ध धम्म बारहवीं शताब्दी तक देश के मैदानी भागों में फलता-फूलता रहा है। यह तब सम्भव हुआ जब बौद्ध  धम्म को उसके अनुयायी 'शासकों का प्रश्रय' मिलता रहा। शासकों के पराभव के साथ ही बौद्ध धम्म को भी काफी क्षति पहुंची। इसके बाद भी भारत के वन्य तथा पर्वतीय इलाकों में बौद्ध धम्म यथावत बना रहा। लद्दाख से लेकर सिक्किम-अरुणाचल-मिजोरम तक बौद्ध धम्म की वर्तमान स्थिति इसका जीवंत उदाहरण है।
अभी हाल के दशकों में बहुजन आंदोलन के प्रभाव और कम-से-कम उत्तर प्रदेश में बहनजी के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनने के परिणाम स्वरूप बौद्ध धम्म को ऑक्सीजन मिलना शुरू हुआ था और उसके पुनरुत्थान के लक्षण दिखाई देने लगे थे। राजधानी लखनऊ से लेकर नोयडा तक विशालकाय बुद्ध और बहुजन महापुरुषों की मूर्तियाँ, गगनचुम्बी सैकड़ों अशोक स्तंभ, स्तूप, स्मारक, उद्यान आदि बौद्ध संस्कृति और सभ्यता के अनगिनत प्रतीक दिखायी देने लगे। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय, अस्पताल, स्टेडियम, सड़कों, भवनों का नामकरण भी बौद्ध धम्म और संस्कृति के अनुरुप किया जाने लगा था। देखते ही देखते भारत के नक्शे में महामाया नगर, गौतम बुद्ध नगर, साहूजी महाराज नगर, अम्बेडकर नगर, पंचशील नगर जैसे बौद्ध धम्म और संस्कृति के परिचायक जिले भी उभर आये थे। लेकिन यह बात बहुजन समाज को कम और मनुवादियों को ज्यादा समझ में आयी। इसीलिए बहुजनों की मूर्खता का फायदा उठाकर मनुवादियों ने बड़ी चतुराई और अपनी सूझबूझ से बहुजन शासन का अंत कर पहले ब्राह्मणवाद के पोषक एक पिछड़े को मुख्यमंत्री बनाया और फिर उसको भी ठिकाने लगाकर खुद सत्ता हथिया ली।
आपकी सृजन शक्ति और बौध्द धम्म की ताकत की वजह से ही
बहुजनों को और खासकर बौद्ध धम्म की चिंता करनेवालों को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि मनुवादियों को मुस्लिमों के बाद अगर सबसे ज्यादा नफरत किसी से है तो वह बौद्धों तथा अम्बेडकरवादियों से है। इसलिए वे सम्राट अशोक महान को भी खलनायक मानते हैं और बाबा साहब आम्बेडकर से उनकी नफरत तो जग जाहिर है ही। इसीलिए वे अपनी पराजय की स्थिति में तथा बौद्ध या अम्बेडकरवादी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए मनुवाद के पोषक दलित या पिछड़े चेहरे को आगे करने में तनिक भी देर नहीं करते। इतना ही नहीं वे वर्षों के सतत संघर्ष से बने मजबूत संगठन और उसके सर्वमान्य नेता को खत्म करने के लिए कुकुरमुत्ते की तरह नित नए संगठन और नेताओं की फौज खड़े करते रहते हैं ताकि न कोई मजबूत संगठन बन पाए और न ही कोई नेता फिर दोबारा सत्ता में आ सके। आज जब बहुजन समाज के सामने कदम-कदम पर संकटों का पहाड़ खड़ा हो तब इस तरह की साजिशों को समझने की नितांत आवश्यकता है। वरना इसी तरह छटपटाते-छटपटाते एक-एक की मौत हो जाएगी या कुचल-कुचल के मार दिये जायेंगे। मेरी बातें आपको कड़वी लग सकती हैं लेकिन समय की नजाकत को देखते हुए आपको आगाह करना जरूरी भी है।

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