एक अयोध्या ही नहीं पूरे देश को बौद्धमय बनाइये..

एक अयोध्या ही नहीं पूरे देश को बौद्धमय बनाइये..

विगत 26 मई को लिखे गए "अयोध्या के अवशेषों पर बहुजनों की चिन्ता" वाले मेरे आलेख पर बहुत से मित्रों, शुभचिंतकों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। उनमें कुछ साथियों ने मेरे आलेख पर असहमति जतायी है। असहमति के स्वर उन मित्रों के ज्यादा हैं जो बहनजी के कार्यों को नजरअंदाज करते हैं। उनकी असहमति स्वाभाविक भी है क्योंकि आलेख में मैंने बहन सुश्री मायावती जी के नेतृत्व में बसपा सरकार के दौरान उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म के उत्थान की दिशा में किये गए महान कार्यों की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है।
 इससे भला कौन इंकार कर सकता है कि अयोध्या के मलवे के समतलीकरण में जो  अवशेष मिल रहे हैं वह बौद्ध धर्म से जुड़े हैं और उनपर प्रथम दावा भी बौद्धों का ही बनता है। यह दावा कोई आज का नहीं है अपितु "बाबरी मस्जिद-राम मंदिर मामले" की सुनवाई के दौरान भी बौद्ध उपासक माननीय विनीत मौर्य जी ने याचिका दायर करते हुए की थी लेकिन मनुपालिका ने उस याचिका को सुनवाई योग्य भी नहीं समझा। उस वक्त जब विनीत जी देश भर के बहुजनों और बौद्धों से सहयोग की अपील कर रहे थे तो किसी ने भी ध्यान नहीं दिया था और न ही किसी ने अयोध्या पर दावे के लिए किसी तरह का कोई आंदोलन खड़ा किया गया। लेकिन आज सभी लोग चिंतित दिखाई देते हैं। यह चिंता स्वाभाविक है और मैं भी इससे पूरी तरह सहमत हूँ, लेकिन मेरी राय में सिर्फ चिन्ता करने और सोशल मीडिया में लिखकर अपना दावा ठोकने से बात बनने वाली नहीं है। जब देश की सर्वोच्च अदालत ने आपके दावे को सुनने लायक नहीं समझा तो क्या समझते हैं रामराज्य की स्थापना को आतुर और मनुविधान की स्थापना के लिए तत्पर भाजपा सरकार आपकी बात या आपका दावा मान लेगी ?
इसी तरह के एक-दो और उदाहरणों की ओर मैं आपका ध्यान आकर्षित करना जरूरी समझता हूँ- "तिरुपति बालाजी मंदिर बौद्ध मंदिर है, वहाँ की मूर्ति भी बुद्ध मूर्ति है।" यह बाबा साहब बता कर गये हैं। आज तक किसकी हिम्मत हुई उस पर दावा करने की या मूर्ति से आवरण हटाकर यह बताने की कि 'यह देखो यह बुद्ध की मूर्ति है' ? और अगर दावा करते भी हैं तो क्या नतीजे सामने आएंगे ? इसी तरह से बोधगया के मंदिर में आज भी हिन्दू पुजारियों का अधिपत्य कायम है। पूज्य भन्ते सुरेश ससाई जी के नेतृत्व में "बोधगया मंदिर मुक्ति" के आन्दोलन की शताब्दी पूरी होने को है, लेकिन सफलता दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही है।
इसलिए मेरा बाबासाहब आम्बेडकर की इस बात पर दृढ़ विश्वास है कि "सत्ता सब तालों की चाबी है" और, इसलिए मैं मानता हूँ कि हम सबका ध्यान- "शासक जमात कैसे बनें ?" इस पर केंद्रित होना चाहिए। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हमें अपनी बौद्ध विरासत को भूल जाना चाहिए या उस पर हमारा कोई दावा नहीं बनता है। मैं मानता हूँ कि हमें छोटी-छोटी चीजों के लिए अलग-अलग संघर्ष करने की बजाय सत्ता के लिए एकजुट होकर संघर्ष करना चाहिए। शासक जमात बनकर ही हम अपने गौरवशाली इतिहास और अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचा सकते हैं या उसे पुनर्जीवित कर सकते हैं।
 मैंने महसूस किया कि हाल ही में अयोध्या में मिलनेवाले अवशेषों को लेकर बहुजन समाज बहुत चिंतित, लाचार और हताश हो रहा है। यह सोशल मीडिया में साफ दिखाई भी पड़ रहा था। इसलिए मैंने "अयोध्या के अवशेषों पर बहुजनों की चिंता" विषयक लेख लिखा। यह आलेख निराश, हताश और अपनी विरासत के प्रति चिंतित बहुजन समाज में नई ऊर्जा का संचार करनेवाला, प्रेरणा  व पथप्रदर्शन करनेवाला सकारात्मक लेख है तथा यह इतिहास से सबक सीखकर नया इतिहास सृजित करने की प्रेरणा देता है। 
हमें अतीत से प्रेरणा लेकर नया इतिहास बनाने की जरूरत है। अगर यह काम कोई पार्टी विशेष करती है जैसा कि मैंने बहुजन समाज पार्टी के बारे में कहा था, तो मैं उसका समर्थन जरूर करता हूँ और आगे भी करता रहूँगा, क्योंकि मैं मानता हूँ शासक वर्ग ही इतिहास निर्माण करता है और बहुजन समाज पार्टी ने अपने शासनकाल में बौद्ध धर्म के उत्थान के लिए जो काम किये वह आधुनिक भारत के इतिहास में अप्रतिम है। यह आत्मसमर्पण नहीं आत्म सम्मान जगाने वाला भाव है। हमें मनुवादी सत्ता के सामने धरना प्रदर्शन करते सदियां बीत गयीं लेकिन उससे कोई लाभ नहीं हुआ और न आगे होने वाला है। हम जितनी ताकत अपने दुश्मनों से लड़ने में लगाते हैं उतनी ताकत अपनी एकता शक्ति को मजबूत करने में लगाते तो यह दिन देखना नहीं पड़ता।
 इसलिए आगे बढ़ कर 'शासक जमात' बनने का सोचिए। एक अयोध्या नहीं पूरे देश में बौद्ध धर्म का परचम लहराइये और फिर से एक नया साम्राज्य खड़ा कर लीजिए। इस महान उपकार के लिए दुनिया आपके कदम चूमेगी।
जय भीम ! जय भारत !!
-प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार

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