बसपा सरकार के प्रथम शासनकाल में अन्य पिछड़े वर्गों के हितों व उत्थान में किये गए 10 प्रमुख कार्य

बसपा के साढ़े चार माह के प्रथम शासनकाल में अन्य पिछड़े वर्गों के हितों व उत्थान में किये गए 10 प्रमुख कार्य
(3 जून पर विशेष)
बहुजन समाज के लिए आज अर्थात 3 जून ऐतिहासिक महत्व का दिन है। आज ही के दिन वर्ष 1995 में  देश में पहली बार सही मायने में अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़े वर्गों तथा धार्मिक अल्पसंख्यक वर्गों का प्रतिनिधित्व करनेवाली सरकार उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ हुई थी। बहन सुश्री मायावती जी के नेतृत्व में गठित बहुजन समाज पार्टी की प्रथम सरकार का कार्यकाल ज्यादा दिन नहीं चला लेकिन लगभग साढ़े चार महीने के अपने शासनकाल में बहनजी ने ऐतिहासिक व अभूतपूर्व कार्य किये। यहाँ मैं 3 जून 1995 से 18 अक्टूबर, 1995 तक की अवधि में पिछडेवर्गों के उत्थान में किये गए ऐतिहासिक व अभूतपूर्व कार्यों की श्रृंखला में 10 प्रमुख कार्यों को संक्षेप में प्रस्तुत कर रहा हूँ-
1- पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग की स्थापना-
अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों के हितों व उनके उत्थान से संबंधित विभिन्न सरकारी योजनाओं का अनुसरण करने के उद्देश्य से देश में पहली बार  12 अगस्त 1995 को "पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग" की स्थापना की गई।

2- उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन-

पिछड़े वर्गों के लोगों के हितों को संरक्षण प्रदान करने के लिए प्रदेश में पहली बार "उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग" का भी गठन किया गया।

3- अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण निदेशालय की स्थापना-
उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग के समग्र विकास एवं उनके कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए जनपद स्तर मंडल स्तर एवं राज्य स्तर पर अधिकारियों कर्मचारियों की तैनाती की स्वीकृति प्रदान की गई इसके लिए 20 सितंबर सन 1995 को "पिछड़ा वर्ग कल्याण निदेशालय" की स्थापना की गई।

4- कानपुर विश्वविद्यालय का नाम पिछड़े वर्ग से संबंध रखने वाले कुर्मी राजा महाराजा छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय किया गया।

5- छात्रावासों में अन्य पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए 27% आरक्षण-

माननीय सुश्री मायावती जी के प्रथम शासनकाल के दौरान ही 1995 में राज्य सरकार के शासनादेश संख्या सीएम 177/ 15-10-95-15(30)/95 दिनांक 27 सितंबर द्वारा पहली बार सरकारी "छात्रावासों में अन्य पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए 27% आरक्षण की व्यवस्था" सुनिश्चित की गई।

6- सरकारी आवासों में 27%आरक्षण का प्रावधान-

29सितंबर 1995 के शासनादेश संख्या 510/का-2/1995 द्वारा पहली बार अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों के लिए "सरकारी आवासों में 27%आरक्षण" की व्यवस्था को  की गई।

7- परीक्षा के पूर्व कोचिंग की व्यवस्था- 
21अगस्त 1995 के शासनादेश द्वारा प्रदेश के पिछड़े व कमजोर वर्गों के शिक्षित बेरोजगारों को सरकारी सेवाओं में "परीक्षा के पूर्व कोचिंग" दिए जाने हेतु छत्रपति शाहूजी महाराज शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की गई।

8- आरक्षण अधिनियम की अनुसूची-एक में ओबीसी की 37 उपजातियां शामिल-

उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की संस्तुति पर माननीय सुश्री मायावती जी की सरकार द्वारा 6 सितंबर 1995 को अधिसूचना(संख्या-बी456/का-2/1995) जारी करके अन्य पिछड़े वर्ग आरक्षण अधिनियम की अनुसूची-एक में 21 मूल जातियों में 37 उपजाति/उपनाम जोड़े गए-
 इनमें अरख- अर्कवंशीय; काछी- कुशवाहा व शाक्य; केवट या मल्लाह- निषाद; कुम्हार- प्रजापति; कुर्मी- चनउ, पटेल, पटनवार, कुर्मी-मल्ल, कुर्मी-सैंथवार; गद्दी-  घोसी; चिकवा(कस्साब)- कुरेशी, चक; छीपी- छीपा; तमोली- बरई व चौरसिया; तेली- सामानी व रोजनगर; दर्जी- इदरीसी; भुर्जी या भड़भुजा- भूंज व कांदू; मनिहार- कचेर व लखेरा; मुराव/मुराई- मौर्य; नाददाफ़ (धुनिया) मंसूरी- कंडेरे व कड़ेरे; रंगरेज- रंगवा; लोनिया- नोनिया, गोले, ठाकुर व लोनिया-चौहान; सोनार- सुनार व स्वर्णकार; हलवाई- मोदनवाल; स्वीपर- (जो एस.सी. की श्रेणी में सम्मिलित ना हो)- हलालखोर;  हज्जाम(नाई)- सलमानी, सविता व श्रीवास।

9- भूमिहीनों को भूमि आवंटित करने का विशेष अभियान-
3जून 1995 को बहन सुश्री मायावती जी के नेतृत्व में देश में बनी बहुजन समाज पार्टी की प्रथम सरकार के बनते ही अनुसूचित जाति-जनजाति वर्गो के साथ-साथ समाज के अन्य पिछड़े वर्गों के भूमिहीन परिवारों को भूमि सुधार के कार्यक्रमों से लाभान्वित करने के लिए अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित पात्रता के अनुसार भूमि आवंटित करने का विशेष अभियान चलाया गया।

10- 15सितंबर 1995 के शासनादेश के द्वारा भूमि आवंटन के संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए गए जिनमें इन वर्गों के लोगों को कृषि योग्य भूमि एवं आवासीय भूमि के लिए आवंटन के विशेष निर्देश दिए गए फिर आगे चलकर यह देखने में आया कि अवैध कब्जेदारों के विरुद्ध पूर्व में मुकदमें न्यायिक मजिस्ट्रेट के कोर्ट में चलने के कारण ऐसे मुकदमों के निर्णय में काफी विलंब होता था, इसलिए कानून की इस कमी को समाप्त करने के लिए माननीय उच्च न्यायालय से समन्वय करके न्यायिक मजिस्ट्रेट का अधिकार परगना मजिस्ट्रेट को देने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया।
प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार
स्रोत- सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार

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