ब्रह्म विहार क्या है ?


'ब्रह्म विहार' का अर्थ है-  "उत्कृष्ट जीवन जीने का मार्ग"। बंधन रहित जीवन जीने के लिए व निर्वाण प्राप्ति के लिए ब्रह्म विहार को समझना और उसका आचरण करना बहुत आवश्यक है। बौद्ध धम्म में ब्रह्म विहार एक ऐसी शिक्षा है जिसके आचरण से विश्व का कोई भी प्राणी दु:खी नहीं रहेगा और एक स्वस्थ समाज का निर्माण होगा। मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा चित्त की ये चार सर्वोत्कृष्ट अवस्थाएँ हैं जिनसे राग , द्वेष ,ईर्ष्या , असूया आदि चित्त के मलों का क्षय होता है।

चित्त की निर्मलता के लिए चार 'ब्रह्म विहार'

  1.   मैत्री :  जीवों के प्रति प्रेम और मित्रता की भावना रखना मैत्री है | अपने प्रति शत्रुता अथवा द्वेष रखने वालों के लिए भी मंगल कामना करना मैत्री है। वैर भाव से पूर्णता मुक्त हो जाना मैत्री है |
  2. करुणा:  दूसरों को दुखी देखकर सत्पुरुषों के हृदय में जो कम्पन होता है उसे करुणा कहते हैं | किसी को दुखी देखकर मन में सहानुभूति की लहर पैदा होने लगना, उसके प्रति भलाई की तरंगें उठने लगना, उसका दुःख दूर करने की भावना पैदा होने लगना करुणा है।
  3. मुदिता:  इसका अर्थ है- प्रसन्नता का भाव। दूसरों को प्रसन्न होता देख अपने भीतर भी प्रसन्नता की लहर उठना, हार्दिक ख़ुशी होना।  दूसरों को सम्पन्न देखकर हर्षित होना, उनसे  ईर्ष्या, द्वेष की भावना न रखना।
  4. उपेक्षा: अच्छी और बुरी दोनों तरह की स्थिति में समता का भाव बनाए रखना। प्रिय और अप्रिय में कोई भेद न करना। अपनी प्रशंसा सुनकर खुश न होना तथा बुराई सुनकर दुखी न होना, दोनों स्थितियों में एक सा रहना न ख़ुशी और न गम।

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