संदेश

जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

"अनुसूचित जाति" का अभिप्राय

'अनुसूचित जाति" का अभिप्राय सन् 1931  में उस समय के जनगणना आयुक्त (मी. जे. एच. हटन) ने पहली संपूर्ण भारत की  अस्पृश्य जातियों  की जन गणना करवाई और बताया कि ‘भारत में 1108 अस्पृश्य जातियांँ है और वें सभी जातियांँ हिन्दू धर्म के  बाहर  हैं। इसलिए, इन जातियों को "बहिष्कृत जाति" कहा गया है। उस समय के ब्रिटिश "प्रधानमंत्री  "रैम्से मैक्डोनाल्ड" ने देखा कि हिन्दू, मुसलमान, सिख, एंग्लो इंडियन की तरह 'बहिष्कृत जातियांँ' भी  एक 'स्वतंत्र वर्ग' है और इन सभी जातियों का  हिन्दू धर्म में समाविष्ट नही है। इसलिए, उनकी "एक "सूची"  तैयार की गयी। उस "सूची" में समाविष्ट  समस्त जातियों' को ही ‘अनुसूचित जाति’ कहा जाता है। इसी के आधार पर भारत सरकार द्वारा ‘अनुसूचित जाति अध्यादेश 1935 के अनुसार कुछ सुविधाएं दी गई हैं। उसी आधार पर भारत सरकार ने  ‘अनुसूचित जाति अध्यादेश 1936  जारी कर आरक्षण  सुविधा का प्रावधान किया ।  आगे  1936  के उसी अनुसूचित जाति अध्यादेश में थोड़ा बहुत बदलाव कर ‘अनुसूचित जाति अध्यादेश 1950’  पारित कर आरक्षण का प्

मरा चूहा बेचकर लखपति बननेवाले एक दरिद्र व्यक्ति की कथा

मरा चूहा बेचकर लखपति बननेवाले एक दरिद्र व्यक्ति की कथा  पूर्व काल में काशी राष्ट्र स्थित वाराणसी नगर में ब्रह्मदत्त के राज्य करते समय 'चुल्ल-महासेठ' नामक प्रसिद्ध सेठ हुए। वह बुद्धिमान, व्यक्त और सब लक्षणों के ज्ञाता थे। एक दिन राजा की सेवा में जाते समय गली में उन्होंने एक मृत चूहे को देखा। उसी समय उन्होंने नक्षत्र का विचार करके कहा- 'बुद्धिमान कुल-पुत्र इस चूहे को ले जाकर अपने परिवार का पालन कर सकता है अथवा जीविकोपार्जन के व्यवसाय में लगा सकता है।" एक दरिद्र कुल-पुत्र जिसका नाम चुल्ल-अन्तेवासिक था, ने चुल्ल-महासेठ की बात सुन (यह बिना जाने नहीं कह रहा है सोचकर) उस चूहे को उठा, एक दुकान पर ले जाकर बिल्ली के खाने के लिए बेच डाला। उससे उसे एक 'काकणी' (कार्षापण का आठवां हिस्सा =इसे हम आज के रुपये के आठवां हिस्सा समझ सकते हैं) प्राप्त हुआ। उस 'काकणी' से उसने गुड़ खरीदा और एक बर्तन में उसने पानी भर लिया। जंगल से आते हुए मालाकारों को देखकर उन्हें थोड़ा-थोड़ा गुड़ और पानी देने लगा। मालाकारों ने उसे एक-एक मुट्ठी फूल दिया। अगले दिन वह उन फूलों को बेचकर प्राप्त मूल