उच्च शिक्षण संस्थानों से पिछड़े वर्गों की बेदखली

 ओबीसी के लोगों ! कब जागोगे ?

उच्च शिक्षण संस्थानों/विश्वविद्यालयों के शिक्षण पदों से पिछड़े वर्गों को किस तरह से वंचित किया जा रहा है इसका ज्वलंत उदाहरण हाल ही में जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत बीएचयू काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राप्त नीचे दिए आँकड़े हैं। नागपुर के श्री संजय थूल को बीएचयू प्रशासन द्वारा दिनाँक 18 सितम्बर 2019 उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का विश्लेषण इसी आलोक में किया गया है-

BHU में ओबीसी के लिए स्वीकृत/आरक्षित सीटें पर नजर डालें-

प्रोफेसर- 61 भर्ती- 0 रिक्त- 25

एसोसिएट प्रोफेसर- 135 भर्ती- 0 रिक्त- 42

असिस्टेंट प्रोफेसर- 372 भर्ती- 224 रिक्त- 141

इनमें पिछड़ों के लिए आरक्षित प्रोफेसर के 36 एसोसिएट प्रोफेसर के 93 तथा असिस्टेंट प्रोफेसर के 74 पदों पर अर्थात- कुल मिलाकर 203 पदों पर सामान्य वर्ग के लोग बैठे हैं।

अब सामान्य वर्ग के लिए स्वीकृत सीटों पर नजर डालें-

प्रोफेसर- 95 लेकिन भर्ती- 130 रिक्त-14

एसोसिएट प्रोफेसर- 204 लेकिन भर्ती- 319 रिक्त- 13

असिस्टेंट प्रोफेसर- 560 लेकिन भर्ती- 630 रिक्त- 93

उक्त आँकड़ों पर नजर डालें तो सामान्य वर्गों के लिए तीनों संवर्गों में कुल स्वीकृत पद- 859 हैं लेकिन वे भर्ती व रिक्त पदों को मिलाकर कुल 1199 पदों पर कब्जा जमाए बैठे हैं अर्थात कुल पदों से 340 पदों पर उनका अतिरिक कब्जा है। सामान्य वर्ग के लोग किस-किस संवर्ग में कितने पदों पर अतिरिक्त कब्जा जमाए बैठे हैं-

प्रोफेसर- 49

एसोसिएट प्रोफेसर- 128

असिस्टेंट प्रोफेसर- 163

कुल मिलाकर तीनों संवर्गों के स्वीकृत 859 पदों की तुलना में 340 अधिक पदों पर सामान्य वर्गों के लोग अतिरिक्त कब्जा जमाए बैठे हैं। इनमें कुछ अपवादों को छोड़कर सभी पद ओबीसी कोटे की हैं जिनमें सवर्ण कब्जा जमाए हुये हैं लेकिन हिंदुत्व के नाम पर पिछड़े वर्ग के लोग संघ-भाजपा की सेवा में तल्लीन हैं। और हाँ ये सिर्फ एक विश्वविद्यालय के आँकड़े हैं अन्य विश्वविद्यालयों में तो और भी बुरा हाल है। 

यहाँ उल्लेखनीय है कि बीएचयू में असिस्टेंट प्रोफेसर के आरक्षित पदों पर जो बड़ी संख्या में भर्तियाँ दिखायी दे रही हैं/अब तक हुई हैं उसके लिए यहाँ प्रोफेसर महेश प्रसाद अहिरवार और उनके साथी सतत संघर्ष करते रहे हैं और समय समय पर आन्दोलन भी करते रहे हैं  वरना अन्य विश्वविद्यालयों में तो हालत बद-से-बदतर हैं।



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