अशोक कालीन पाषाण स्तूप की खोज
उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के फिरोजपुर ग्राम की कोठी पहाड़ी में मिला उत्तर भारत का पहला अशोक कालीन पाषाण स्तूप
ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के पुरास्थलों की विलक्षण खोज की कड़ी में भीखमपुर से मिली
बुध्द तथा बोधिसत्व की प्रतिमाएँ और पुरातात्विक महत्व का विशाल टीला
दौलतपुर की पहाड़ी में
पुरापाषाणिक औजारों तथा चित्रित शैलाश्रयों की खोज से पुरातात्विक अनुसंधान के खुलेंगे नवीन आयाम
परिचय- उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है। यह जिला प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान तक अनेक सांस्कृतिक क्रियाकलापों का क्षेत्र रहा है। इस जनपद में प्रवाहमान छोटी-बड़ी नदियां सभ्यताओं में फलने-फूलने में अहम रही हैं। चंदौली जिले का पुरातात्विक अन्वेषण सर्वप्रथम 1875-76 ई० में सर् अलेक्जेंडर कनिंघम, 1877-78 ई० में ए०सी०एल० कार्लाइल तथा उसके बाद 1891 ई० में ए० फ़्यूहरर जैसे पुराविदों ने किया । क्षेत्र में हुए पुरातात्त्विक अन्वेषण के फलस्वरूप प्रागैतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक तक के विभिन्न शैल-चित्रों से युक्त शैलाश्रयों, सूक्ष्मपाषाणिक, ताम्रपाषाणिक तथा लौह काल से संबंधित पुरास्थल प्रकाश में आए।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के शोध छात्र परमदीप पटेल द्वारा चंदौली जिले में नये पुरास्थलों की खोज की गई है। प्रोफेसर महेश प्रसाद अहिरवार के पर्यवेक्षण में अपने शोध विषय ‘चंद्रप्रभा नदी घाटी के विशेष सन्दर्भ में चंदौली जनपद का सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक अध्ययन’ के अंतर्गत कर रहे सर्वेक्षण के दौरान अनेक पुरास्थल प्रकाश में आये हैं।
कोठी पहाड़ी, डीह बाबा (कोठी बाबा), फिरोजपुर -
कोठी पहाड़ी चन्दौली जिले के चकिया तहसील के फिरोजपुर ग्राम में स्थित एक महत्वपूर्ण पुरास्थल है, जो कि चकिया शहर के पश्चिम दिशा में लगभग 7.5 किमी की दूरी पर है। चंद्रप्रभा नदी इस पुरास्थल से 2.5 कि०मी० की दूरी पर पूर्व दिशा में प्रवाहित होती है तथा इस क्षेत्र की प्रमुख नदी गंगा इस पुरास्थल से 23 किमी दूर उत्तर दिशा में प्रभावित होती है। इसी पहाड़ी के दक्षिणी तलहटी में बीहड़ी नामक जलाशय स्थित है जो की इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण जल स्रोतों में से एक है। यह पहाड़ी तीन गांवों की सीमा पर अवस्थित है जिसके पश्चिम में कुसाही ग्राम, उत्तर में गणेशपुर तथा दक्षिण में दाउदपुर नामक ग्राम स्थित हैं। यहाँ पर तीन पहाड़ियाँ स्थित हैं। इनमें से क्रमशः पश्चिम दिशा की दो पहाड़ियों को ग्रामीण कोठी पहाड़ी के नाम से सम्बोधित करते हैं। यहाँ से पुरापाषाणिक उपकरण से लेकर ऐतिहासिक काल तक के क्रमवार अवशेष प्राप्त होते हैं।
इस क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि पत्थर से निर्मित एक स्तूप है जो कि फिरोजपुर ग्राम में स्थित कोठी पहाड़ी के शिखर पर अवस्थित है जिसे फिरोजपुर ग्राम के निवासी कोठी बाबा के रूप में पूजते हैं तथा इसे ग्राम का डीह मानते हैं। स्तूप की अधिकतम ऊंचाई लगभग 10 फुट है तथा प्रदक्षिणापथ सहित अधिकतम व्यास लगभग 16 फुट है। इस स्तूप के पूर्वी आधे भाग को खजाना खोजने वालों ने बुरी तरह से नष्ट कर दिया है। शोध निर्देशक प्रोफेसर एम० पी० अहिरवार का कहना है कि चंदौली जिले में पाषाण स्तूप की खोज ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह पाषाण स्तूप सम्राट अशोक कालीन है और संभवतः उत्तर भारत का पहला और एकमात्र पाषाण निर्मित स्तूप है। इस तरह के पाषाण-स्तूप साँची (मध्य-प्रदेश) और उसके समीपवर्ती स्थानों में विशेष रूप से देखने को मिलते हैं जो अपने कलागत सौंदर्य और निर्माण शैली के लिए विश्वविख्यात हैं। गौरतलब है कि उत्तर भारत में अभी तक जितने भी स्तूप मिले हैं वह सभी पक्की ईंटों से निर्मित हैं। प्रोफेसर अहिरवार कहते हैं कि परमदीप पटेल की इस महत्वपूर्ण खोज से ऐतिहासिक और पुरातात्विक अनुसंधान के नए द्वार खुलेंगे क्योंकि नवीन सर्वेक्षित इन पुरस्थालों से प्रागैतिहासिक काल के पुरापाषाण उपकरण के साथ महापाषाणिक समाधियाँ, पाँचवीं-छठवीं शताब्दी के मृदभांड और मौर्यकाल तक के मानवीय क्रियाकलापों के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। जिससे मानव के उद्भव और विकास के हजारों वर्षों के अनवरत इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। यहाँ यह विशेष उल्लेखनीय है कि कोठी का यह स्तूप महत्व की दृष्टि अहरौरा पुरास्थल (जहाँ से सम्राट अशोक महान का शिलालेख मिला है) से मात्र 10 किमी की दूरी पर पश्चिम दिशा में अवस्थित है तथा विश्वविख्यात बौद्ध पुरास्थल सारनाथ लगभग 48 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा में अवस्थित है।
कोठी पहाड़ी से एक पुरापाषाण काल का हस्तकुठार प्राप्त हुआ है। दोनों कोठी पहाड़ियों के मध्य समतल पठारी भाग का कुल क्षेत्रफल लगभग 75 एकड़ के आसपास है। इस समतल पठारी भाग में मध्य-पाषाणकालीन उपकरणों की भरमार है। यहाँ अनेक महापाषाणिक समाधियां भी देखी जा सकती हैं। यहाँ से चाक पर निर्मित उत्तरी काले चमकीले मृदभांड, कृष्ण लोहित मृदभांड तथा लोहित मृदभांडों के बहुसंख्यक ठीकरे भी प्राप्त होते हैं जो कि बुरी तरह से अपक्षय के शिकार हुए हैं। पाषाण से निर्मित बाटनुमा गोलाकार तथा चौकोर संरचनायें भी बहुतायत में प्राप्त होते है जिनका वजन 50 ग्राम से लेकर 5 किलोग्राम या इससे भी ज्यादा है।
चित्र: कोठी पहाड़ी पर स्थित पाषाण स्तूप
चित्र: कोठी पहाड़ी स्तूप का खंडित भाग
चित्र: दो पहाड़ियों के मध्य में स्थित कोठी पहाड़ी तथा दक्षिणी तलहटी पर स्थित बिह्ड़ी बांध
दाउदपुर की पहाड़ी-
चंदौली जिले के चकिया तहसील में ही स्थित यह पुरास्थल दाउदपुर ग्राम के पहाड़ी में अनेक शैलाश्रय एवं गुफाएं है जिनमें से दो शैलाश्रय चित्रकारी युक्त हैं। चंद्रप्रभा नदी इस पुरास्थल से 1.5 किमी दूर पूर्व दिशा में प्रवाहित होती है। कोठी पहाड़ी से यह पहाड़ी मात्र एक किमी की दूरी पर दक्षिण दिशा में स्थित है। प्रथम शैलाश्रय के शैलचित्र काफी ज्यादा धूमिल हो गए हैं तथा इसका बहुतायत हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है। इस शैलाश्रय के शैलचित्रों में वानस्पतिक एवं ज्यामितीय अलंकरण अभिप्राय इत्यादि देखे जा सकते हैं। शैलाश्रयों के इर्दगिर्द सूक्ष्म पाषाणिक उपकरण भी प्राप्त होते हैं।
दूसरे शैलाश्रय में शैलचित्र अपेक्षाकृत ज्यादा सुरक्षित हैं। इस शैलाश्रय के शैलचित्रों में कालक्रम भी देखा जा सकता है। कुछ शैलचित्र प्रारंभिक प्रकार के प्रतीक होते है। शैलाश्रय की दीवार तथा छत के साथ ही साथ कुछ शैलचित्र आधार भाग पर भी देखें जा सकते हैं। शैलचित्रों में बहुधा शिकार और नृत्य के दृश्य तथा अन्य प्रकार के अलंकरण अभिप्राय भी दृष्टिगोचर होते हैं। शैलचित्रों को बनाने में लाल रंग का प्रयोग किया गया है। ज्यादातर मनुष्य आकृतियां तीर धनुष लिए शिकार करते हुए दर्शाए गए हैं कुछ में स्त्री पुरुष आकृतियां गायन वादन अथवा नृत्य करते हुए दर्शाये गए हैं। पशु आकृतियों में हाथी, हिरण, सुअर, खरगोश, मगर/घड़ियाल प्रमुख हैं। इनकी अनुमानित तिथि 10000-12000 वर्ष पूर्व मानी जा सकती हैं।
इन दोनों पुरास्थलों पर पहुँचने के लिए सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत वाहनों का मदद लिया जा सकता है। निकटतम रेलवे स्टेशन पं दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन से इस पुरास्थल की अधिकतम दूरी 26 किमी है। यहाँ से राष्ट्रीय राजमार्ग 24 (पुराना राष्ट्रीय राजमार्ग 97) मुगलसराय-चकिया मार्ग पर चलते हुए सिकंदरपुर मोड़ से सिकंदरपुर लिंक मार्ग पर आना पड़ता है तदुपरांत मार्ग का अनुशरण करते हुए आगे भीषमपुर-सिकंदरपुर लिंक मार्ग पर आना होता है। इसके आगे बढ़ते हुए जागेश्वरनाथ मार्ग (चकिया लिंक मार्ग) पर पहुँचते हैं। इसी मार्ग पर पुनः आगे बढ़ते हुए फिरोजपुर ग्राम में पहुँचा जा सकता है, जहाँ से पैदल अथवा छोटे वाहनों के माध्यम से इस पुरास्थल पर पहुँचा जा सकता है।
चित्र: दाउदपुर में स्थित शैलाश्रय
चित्र: दाउदपुर पहाड़ी में स्थित शैलाश्रय के शैलचित्र
बंजारी देवी पहाड़ी (भीखमपुर)-
चंदौली जिले के चकिया तहसील में भीखमपुर ग्राम में स्थित बंजारी देवी पहाड़ी पुरातात्विक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह पहाड़ी चंद्रप्रभा नदी के बायें तट से आधे किमी की दूरी पर है। यहाँ से मध्यपाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक के अवशेष प्राप्त होते हैं। यहाँ से सूक्ष्म पाषाणिक उपकरण बहुतायत में प्राप्त हुए हैं।
पहाड़ी पर अनेक शैलाश्रय विद्यमान हैं जिनमें से तीन शैलाश्रयों में ऐतिहासिक एवं प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्रों को देखा जा सकता है। साथ ही पहाड़ी के ऊपर कुषाण कालीन ईंटों (31×23×6 सेमी) तथा पत्थरों से निर्मित एक संरचना टीले के रूप में विद्यमान थी जिसपर आधुनिक एक छोटे मंदिर का निर्माण किया गया है। इसी मंदिर के गर्भगृह में बोधिसत्व की खंडित प्रतिमा विद्यमान है, प्रतिमाशास्त्रीय विधान से यह मूर्ति बोधिसत्व की प्रतीत होती है जो कि कुषाणकालीन लक्षणों से युक्त हैं। मूर्ति शीर्ष विहीन है जिसकी लम्बाई 84 सेमी, चौड़ाई 48 सेमी तथा मोटाई लगभग 22 सेमी है। कुछ ग्रामीण इस मूर्ति को बंजारी देवी के रूप में पूजा करते है। मंदिर के चौखट में प्रयुक्त पत्थर के चार बड़े-बड़े स्तम्भ पास में पड़े हुए हैं। मंदिर के बगल में ही पत्थर काटने के चिन्ह देखे जा सकते हैं। पूरे पहाड़ी पर यत्र तत्र अनेक संकेतों को भी उकेरा गया है। कुछ संकेत 600 ई०पू० में मगध साम्राज्य द्वारा प्रचलित आहत सिक्कों के संकेतों के सामान हैं। ग्रामीणों का मत है कि प्राचीन काल में इस पहाड़ी के शैलाश्रयों में बौद्ध भिक्षु निवास करते थे जिसके कारण गांव का नाम भिखमपुर पड़ा। पहाड़ी के पूर्वी ढ़लान पर एक गुफा में भगवान बुद्ध की एक खंडित मूर्ति स्थित है जो कि गुप्तोत्तर कालीन किसी बड़ी मूर्ति का भाग प्रतीत होती है। ध्यान मुद्रा में स्थित यह मूर्ति बलुआ पत्थर से निर्मित है जिसकी ऊंचाई 20 सेमी, चौड़ाई 14 सेमी तथा अधिकतम मोटाई 7 सेमी है।
बंजारी देवी पहाड़ी के पूर्व दिशा में चंद्रप्रभा नदी के बाएं तट पर एक टीला स्थित है। चंद्रप्रभा नदी के तट पर स्थित यह पुरास्थल लगभग 10 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इस पुरास्थल से लोहित मृदभांड, कृष्णलोहित मृदभांड, कृष्णलेपित मृदभांड तथा लाल मृदभांडों के मोटे गढ़न के मृदभांडों के टुकड़े भी प्राप्त हुए हैं। यहाँ से पत्थर के जात (चक्की), सील-लोढ़े तथा अन्य वस्तुएँ बड़ी संख्या में प्राप्त होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह पुरास्थल उपर्युक्त पाषाण उपादानों का निर्माण केंद्र था। यहाँ से पूर्वमध्यकालीन मूर्ति का पदस्थली तथा मंदिर के कुछ अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। गौरतलब बात तो यह है कि इस टीले से सीमित मात्रा में कुछ ईंटे प्राप्त हुई हैं जो कुषाणकालीन प्रतीत होती हैं।
चित्र- बंजारी देवी पहाड़ी की प्राकृतिक गुफा में स्थित भगवान बुद्ध की स्थानक प्रतिमा
चित्र: बंजारी देवी पहाड़ी की चोटी पर स्थित आधुनिक मंदिर में रखी बोधिसत्व की मूर्ति
पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शोध-छात्र परमदीप पटेल, रविशंकर सिंह पटेल तथा केतन पटेल शामिल रहें तथा विभाग के ही वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. एम० पी० अहिरवार, अस्सिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विनय कुमार ने खोजें गए पुरास्थलों से प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्यों के प्रमाणन के निमित्त पुरास्थलों का भ्रमण किया तथा उनके ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व की पुष्टि की।
संपर्क:
प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार अहिरवार, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, काहिविवि, वाराणसी
मोबाइल नं- 9450533686, 9838556342
परमदीप पटेल, शोध-छात्र, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, काहिविवि, वाराणसी
मोबाइल नं-9598334032
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