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बामसेफ का तृतीय राष्ट्रीय अधिवेशन: चंडीगढ़

बहुजन युवाओं की जानकारी हेतु ~ ============================= सोबरन सिंह यादव साहब के विद्यालय से(41) ============================= आज बहुजन युवाओं के लिए कुछ मिशन मूवमेंट की 39 साल पुरानी भूली-बिसरी यादें ! इस उद्देश्य के साथ तमाम सारी पुरानी फ़ोटो संलग्न की गयी हैं ताकि आपको तत्कालीन परिदृश्य को समझने में आसानी हो सके ।  6 सितंबर 1973 को  पूना में मात्र कुछ मुट्ठीभर कर्मचारियों ने मान्यवर कांशीराम साहब के नेतृत्व में बामसेफ बनाने का निर्णय लिया था और तीन माह पश्चात 6 दिसंबर 1973 को दिल्ली में बामसेफ की स्थापना कर उसे विस्तार देने हेतु  1974 में बम्बई में, 1976 में दिल्ली व 1977 में पुनः बम्बई (अब मुंबई) में बामसेफ के सालाना सम्मेलन समारोह आयोजित किये गए और उसके बाद 1978 में 6 दिसंबर को बामसेफ के पांच साल पूरे होने के मौके पर दिल्ली में बामसेफ प्रादुर्भाव अधिवेशन Birth of BAMCEF आयोजित किया गया इसके पश्चात 1979 में 1दिसंबर से 3दिसंबर तक तीन दिवसीय नागपुर में बामसेफ के प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया गया । इस नागपुर वाले अधिवेशन में हमारे इटावा से हमारे बैंक के साथी श्री एस०आर० आदर

एक अयोध्या ही नहीं पूरे देश को बौद्धमय बनाइये..

एक अयोध्या ही नहीं पूरे देश को बौद्धमय बनाइये.. विगत 26 मई को लिखे गए "अयोध्या के अवशेषों पर बहुजनों की चिन्ता" वाले मेरे आलेख पर बहुत से मित्रों, शुभचिंतकों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। उनमें कुछ साथियों ने मेरे आलेख पर असहमति जतायी है। असहमति के स्वर उन मित्रों के ज्यादा हैं जो बहनजी के कार्यों को नजरअंदाज करते हैं। उनकी असहमति स्वाभाविक भी है क्योंकि आलेख में मैंने बहन सुश्री मायावती जी के नेतृत्व में बसपा सरकार के दौरान उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म के उत्थान की दिशा में किये गए महान कार्यों की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है।  इससे भला कौन इंकार कर सकता है कि अयोध्या के मलवे के समतलीकरण में जो  अवशेष मिल रहे हैं वह बौद्ध धर्म से जुड़े हैं और उनपर प्रथम दावा भी बौद्धों का ही बनता है। यह दावा कोई आज का नहीं है अपितु "बाबरी मस्जिद-राम मंदिर मामले" की सुनवाई के दौरान भी बौद्ध उपासक माननीय विनीत मौर्य जी ने याचिका दायर करते हुए की थी लेकिन मनुपालिका ने उस याचिका को सुनवाई योग्य भी नहीं समझा। उस वक्त जब विनीत जी देश भर के बहुजनों और बौद्धों से सहयोग की अपील कर रहे थे

Arya’ migration into India

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MIGRATIONS |   HISTORY & CULTURE New reports clearly confirm ‘Arya’ migration into India Tony Joseph SEPTEMBER 13, 2019 17:38 IST UPDATED:  SEPTEMBER 14, 2019 09:07 IST The Arya were central Asian Steppe pastoralists who arrived in India between roughly 2000 BCE and 1500 BCE, and brought Indo-European languages to the subcontinent The last time a paper titled ‘The Genomic Formation of South and Central Asia’ was released online, in March 2018, it created a sensation in India and around the world. Mostly because the paper, co-authored by 92 scientists, many of them doyens of different disciplines, said that between 2000 BCE and 1000 BCE, there were significant migrations from the Central Asian Steppe that most likely brought Indo-European languages into India — just as Steppe migrations into Europe a thousand years earlier, beginning around 3000 BCE, had spread Indo-European languages to that continent as well. In other words, the paper supported the long-held idea of an ‘Arya’ migr

अयोध्या के बौद्ध अवशेषों पर बहुजनों की चिन्ता

अयोध्या के बौद्ध अवशेषों पर बहुजनों की चिन्ता यह सही है कि अयोध्या का प्राचीन इतिहास बौद्ध धम्म-संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़ा है और वहाँ मिलनेवाले पुरातात्विक अवशेष भी बौद्ध काल के स्वर्णिम इतिहास का उद्घोष करते हुए दिखायी देते हैं, फिर भी मेरी नजर में अयोध्या के पुराने बौद्ध खंडहरों  पर सिर पटककर खुद को लहूलुहान करने की बजाय नया इतिहास लिखने, बनाने की तैयारी करना ज्यादा तार्किक, उचित और न्यायसंगत तथा समय की मांग है। इतिहास गवाह है कि जब-जब देश में बोधिवृक्ष की जड़ें काटी गयीं बुद्ध के अनुयायियों ने हर बार नया इतिहास सृजित किया और बौद्ध धम्म का पुनरोत्थान करके उसको वैश्विक धर्म बना दिया। मनुवादियों के अनवरत विध्वंस के बावजूद बौद्ध धम्म बारहवीं शताब्दी तक देश के मैदानी भागों में फलता-फूलता रहा है। यह तब सम्भव हुआ जब बौद्ध  धम्म को उसके अनुयायी 'शासकों का प्रश्रय' मिलता रहा। शासकों के पराभव के साथ ही बौद्ध धम्म को भी काफी क्षति पहुंची। इसके बाद भी भारत के वन्य तथा पर्वतीय इलाकों में बौद्ध धम्म यथावत बना रहा। लद्दाख से लेकर सिक्किम-अरुणाचल-मिजोरम तक बौद्ध धम्म की वर्तमान स्थिति इस

बौध्द धम्म व संस्कृति का महान केन्द्र वाराणसी

वाराणसी के प्राचीनतम उल्लेख (वाराणसी : नामकरण के 64 साल पर विशेष) अंग्रेजों के समय 'Benares' कहा जानेवाला वाराणसी का आधुनिक ढंग से प्रशासनिक नामकरण आज ही के दिन 24 मई, 1956 को किया गया। स्थानीय अखबार अमर उजाला ने अपने आज के अंक में इस ऐतिहासिक दिन को विशेष महत्व और वाराणसी की कुछ चर्चित हस्तियों की टिप्पणियों के साथ प्रकाशित किया है। अखबार लिखता है कि धर्म, कला, संस्कृति, सभ्यता का शहर काशी का नाम पञ्चाङ्ग के अनुसार बैशाख पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा और चन्द्र ग्रहण के योग में काशी का नाम वाराणसी किया गया था। यह तो आजादी के बाद नये शासनादेश से संबंधित सूचना मात्र है। आइये वाराणसी और इसके नामकरण से जुड़े सुदूर अतीत के कुछ ऐतिहासिक तथ्यों से आपका परिचय करवाते हैं- 'वाराणसी' के आरंभिक और प्राचीनतम उल्लेख हमें बौद्ध साहित्य में मिलते हैं। कुछ लोग 'काशी' या 'वाराणसी' से मिलते-जुलते शब्दों के आधार पर इसके नामकरण का आधार अथर्ववेद में ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं लेकिन वह तथ्यों से परे व निरर्थक है। वहाँ इन शब्दों के अर्थ भिन्न हैं और उनसे किसी नगर का बोध नहीं होता और न

'आर्य' और 'अरिय' का भेद

" अरिय " शब्द का पर्याय  ' आर्य ' शब्द नहीं है। चार 'अरिय' सत्य क्या है ? "इदं अरियसच्चं।" = यह अरिय सत्य है। आचार्य आलारकालाम से सातवां और उद्दक रामपुत्र से आठवां ध्यान सीख कर जब समाधि ही पुष्प हुई, प्रज्ञा विमुक्ति नहीं प्राप्त हुई, तब बोधिसत्व सिद्धार्थ ने लगभग छः वर्षों तक उन दिनों बहुप्रचलित कायदंडन की दुष्करचर्या बड़ी कठोरता के साथ निभाई, परंतु वह नितांत निक्कमी और निरर्थक साबित हुई। अत: उसे त्याग दिया। बोधिसत्व ने आहार ग्रहण करना शुरू किया। आहार ग्रहण करने से आवश्यक शरीर बल प्राप्त कर उन्होंने नयी राह खोज निकाली और वैशाख पूर्णिमा की रात में पीपल वृक्ष तले सम्बोधि-ज्ञान प्राप्त की। सम्बोधि-ज्ञान प्राप्त होने से वे सम्यक सम्बुद्ध हुए। सम्यक सम्बुद्ध ने सारनाथ में पँचवग्गिय परिव्राजकों को प्रथम धम्म उपदेश दिया। वह दिन था- अषाढ पूर्णिमा। बुद्ध ने चार अरिय सत्य का उपदेश दिया। कौन से चार अरिय सत्य? यह है- (१) इदं दुक्खं अरियसच्चं । - यह दु:ख अरिय सत्य है। (२) इदं दुक्खसमुदयं अरियसच्चं । - यह दु:ख समुदय अरिय सत्य है। (३) इदं दुक्खनिरोधं अरियसच्चं ।

बौद्ध धम्म क्या है ?

बौद्ध धम्म क्या है ? हम जानें और समझें ************************************     तथागत बुद्ध ने अपने धम्म को सारनाथ के ऋषिमृगवन में धम्मचक्रप्रवर्तन करते हुए पंचवर्गीय परिब्राजकों के समक्ष रखा था और फिर बाद में प्रचार करते समय अपने  अनेक प्रवचनों में उसकी व्याख्या की थीं। बौद्ध ग्रंथों-अंगुत्तर निकाय ,संयुत्त निकाय,महावग्ग,धम्मपद,मज्झिम निकाय ,दीघनिकाय के महानिदान सुत्त में उनके धम्म का विवरण हमें मिलते हैं। बाबा साहेब डॉ आंबेडकर ने अपनी पुस्तक 'दि बुद्ध एण्ड हिज धम्म' में इस पर विस्तार से चर्चा की हैं।         सभी धर्मों में ईश्वर , ईश्वर के अवतार और पैगम्बर या ईश्वर का ज्येष्ठ पुत्र या दूत होते हैं और उन्हीं के नाम पर धर्म का संचालन किया जाता है। हर धर्म में ईश्वर के अवतार या पैगम्बर या ईश्वरीय दूत को मानना तथा उनके बताए हुए मार्ग और कही हुई बातों को मानना जरुरी है, क्योंकि वे ईश्वरीय बताए गए होते हैं।किन्तु तथागत बुद्ध ने अपने धम्म  में ऐसे किसी भी स्थान का दावा नहीं किया और उन्होंने कहा है कि वे मोक्ष -दाता नहीं हैं, क्योंकि वे किसी भी व्यक्ति को दुखों से मुक्त करने का आश्वा

बुद्ध और बोधिसत्व

'बुद्ध' किसे कहते हैं? Who is 'Buddha' ? 'बुद्ध' शब्द का अर्थ क्या है? What is the meaning of word 'Buddha' ? 'बुद्ध' का अर्थ है सम्पूर्ण ज्ञान का प्रतीक बुद्धत्व पद का लाभी व्यक्ति 'बुद्ध' नाम बोधि प्राप्ति के बाद सम्बोधि प्राप्त करने वाले व्यक्ति के लिए प्रयुक्त किया जाता है। "न मातरा कतम,  न पितरा कतम  विमोक्खन्ति। एतं बुद्धानं भगवन्तान बोधिया मूले.... पञ्ञत्ति।" -  न माता ने, न पिता ने यह नाम उनको दिया बल्कि विमोक्ष जो भगवान ने बोधि वृक्ष मूल में ज्ञान प्राप्त पुरुष- होने के कारण कहा गया। बुद्ध असामान्य मानवी होते है। जैसे मानव इस धरती पर चलते-फिरते साधारण काम-काज करते है और अपने बाल बच्चों को पालते पोसते दिखाई देते है, वैसे बुद्ध नहीं होते है। हम उन्हें देवता भी नहीं कह सकते, क्योंकि देवताओं में राग-द्वेष, सुख- विलास होता है। बुद्ध राग-द्वेष और विलासिता से विमुक्त होते है। सम्पूर्ण मानवीय दुर्बलताओं और असंगतियों को समूलोच्छेद करने और सर्वोत्तम ज्ञान प्राप्ति  करने वाले व्यक्ति को बुद्ध कहते हैं। बुद्ध बनने वाली व्यक्ति प्र